Sunday, April 12, 2020

हाथ मिलाने से भी महरूम रहे

आज तक बनते रहे हैं जो हमारे ज़ामिन
उन से हम हाथ मिलाने से भी महरूम रहे
– जगदीश प्रकाश




अजनबी रंग छलकता हो अगर आँखों से
उन से फिर हाथ मिलाने की ज़रूरत क्या है
– नदीम गुल्लानी




वक़्त के साथ ‘सदा’ बदले तअल्लुक़ कितने
तब गले मिलते थे अब हाथ मिलाया न गया
– सदा अम्बालवी




वो वक़्त का जहाज़ था करता लिहाज़ क्या
मैं दोस्तों से हाथ मिलाने में रह गया
– हफ़ीज़ मेरठी




वो कौन था जो हाथ मिला कर निकल गया
बरपा हिसार-ए-जिस्म में कोहराम क्यूँ हुआ
– हमदम कशमीरी





मेरी बर्बादी में था हाथ कोई पोशीदा
उस ने जब हाथ मिलाया तो मुझे याद आया
– हैरत फ़र्रुख़ाबादी




दुनिया तो हम से हाथ मिलाने को आई थी
हम ने ही एतिबार दोबारा नहीं किया
– अंबरीन हसीब अंबर

हम quarantine मे रह गए,

जवानी के दिन चमकीले हो गए,
हुस्न के तेवर नुकीले हो गए,
हम quarantine मे रह गए,
उधर उनके हाथ पीले हो गए।



गहरी आंखो के समंदर मे उतार जाने दे,
प्यार का मुजरिम हूँ मुझे डूब मर जाने दे,
बिल कितने तेरे फोन के भरे है मैंने,
सब कुछ वापस चाहिए बस मुझे quarantine से वापस आने दे।




na dua kaam aai,
na dava kaam aai,
aise coronavirus ke nazuk waqt par,
ek bewafa kaam aai.

न दुआ काम आई,
न दवा काम आई,
ऐसे करोना वाइरस के नाज़ुक वक़्त पर,
एक बेवफा काम आई।




मोहब्बत मे जीने मरने की कसम खाई है,
आज ये कोरोना दीवार बन कर सामने आई है,
lockdown है फिर भी मिलने बुलाया है,
लगता है ये प्यार का वाइरस कोरोना बन कर आया है,
मोहब्बत खोने का गम है,
कहीं इस प्यार के चक्कर मे जान न चली जाए,
stay home का नारा है मैं तो घर पर ही रहूँगा,
जिंदगी रही तो तेरे जैसी दूसरी ढूंढ लूँगा





जानेमन तुम इतराते बहुत हो,
जानेमन तुम मुसकुराते बहुत हो,
जी कर रहा है आज तुम्हें घर पर बुलाऊ,
क्यू की इस lockdown मे तुम हसाते बहुत हो,
पर आओगे कैसे सड़क पर पुलिस के डंडे है,
21 दिन बाद आना खा कर सो जाओ
freeze मे मुर्गी के अंडे है।





को

रो

ना

कोई

रोक सको तो रोको

ना




अपने ख़िलाफ़ फैसला ख़ुद ही लिखा

अपने ख़िलाफ़ फैसला ख़ुद ही लिखा है आपने
हाथ भी मल रहे हैं आप, आप बहुत अजीब हैं


अब नहीं बात कोई ख़तरे की
अब सभी को सभी से ख़तरा है



कोई हाथ भी न मिलाएगा जो गले मिलोगे तपाक से
ये नए मिज़ाज का शहर है ज़रा फासले से मिला करो




ये जो मिलाते फिरते हो तुम हर किसी से हाथ
ऐसा न हो कि धोना पड़े जिंदगी से हाथ




हाल पूछा न करे हाथ मिलाया न करे
मैं इसी धूप में खुश हूं कोई साया न करे




आंख भर देख लो ये वीराना
आजकल में ये शहर होता है




चहकते बोलते शहरों को क्या हुआ नासिर
कि दिन को भी मिरे घर में वही उदासी है



एक ही शहर में रहना है मगर मिलना नहीं
देखते हैं ये अज़ीय्यत भी गवारा करके







कौन तन्हाई का एहसास दिलाता है मुझे
यह भरा शहर भी तन्हा नज़र आता है मुझे






रास्ते हैं खुले हुए सारे
फिर भी ये ज़िंदगी रुकी हुई है




बे-नाम से इक ख़ौफ़ से क्यों दिल है परेशां
जब तय है कि कुछ वक़्त से पहले नहीं होगा




हम को यारों ने याद भी न रखा
जौन यारों के यार थे हम भी





आंखों में उड़ रही है लुटी महफ़िलों की धूल
इबरत सराए दहर है और हम हैं दोस्तो




घर में ख़ुद को क़ैद तो मैंने आज किया है
तब भी तन्हा था जब महफिल-महफिल था मैं



घर तो ऐसा कहां का था लेकिन
दर-बदर हैं तो याद आता है




बोझ उठाते हुए फिरती है हमारा अब तक
ऐ ज़मीं मां तेरी यह उम्र तो आराम की थी




रात को दिन से मिलाने की हवस थी हमको
काम अच्छा न था अंजाम भी अच्छा न हुआ





थकना भी लाज़मी था कुछ काम करते-करते
कुछ और थक गया हूं आराम करते-करते





मिल बैठ के वो हंसना वो रोना चला गया
अब तो कोई ये कह दे करोना चला गया





जरा सी कैद से


जरा सी कैद से घुटन तुम्हें होने लगी,  
तुम्हें तो पंक्षी की कैद सदा भली लगी..।’ 



‘इक मुद्दत से आरजू थी फुरसत की....
मिली तो इस शर्त पे कि किसी से ना मिलो।’ 



कल तक जो कहते थे मरने की फुर्सत नहीं,
आज वो बैठकर सोचते हैं जिएं कैसे..।’ 




सारे मुल्कों को नाज था अपने-अपने परमाणु पर
अब कायनात बेबस हो गई छोटे से कीटाणु पर।’




कुदरत का कहर भी जरूरी था साहब
हर कोई खुद को खुदा समझ रहा था।’



ना इलाज है ना दवाई है, 
ए इश्क तेरे टक्कर की बला आई है।






कोरोना शेर

ये कह के दिल ने मिरे हौसले बढ़ाए हैं
ग़मों की धूप के आगे ख़ुशी के साए हैं
- माहिर-उल क़ादरी


हार हो जाती है जब मान लिया जाता है
जीत तब होती है जब ठान लिया जाता है
- शकील आज़मी


वक़्त की गर्दिशों का ग़म न करो
हौसले मुश्किलों में पलते हैं
- महफूजुर्रहमान आदिल


दुनिया में वही शख़्स है ताज़ीम के क़ाबिल
जिस शख़्स ने हालात का रुख़ मोड़ दिया हो
-Arsalan-




हो न मायूस ख़ुदा से 'बिस्मिल'
ये बुरे दिन भी गुज़र जाएँगे
- बिस्मिल अज़ीमाबादी



इतना भी ना-उमीद दिल-ए-कम-नज़र न हो
मुमकिन नहीं कि शाम-ए-अलम की सहर न हो
- नरेश कुमार शाद



मुश्किल का सामना हो तो हिम्मत न हारिए
हिम्मत है शर्त साहिब-ए-हिम्मत से क्या न हो
- इम्दाद इमाम असर




ये भी तो सोचिए कभी तन्हाई में ज़रा
दुनिया से हम ने क्या लिया दुनिया को क्या दिया
- हफ़ीज़ मेरठी



हम बदलते हैं रुख़ हवाओं का
आए दुनिया हमारे साथ चले
- क़ाबिल अजमेरी