Wednesday, September 9, 2020

चाय कैसी बनाते हो पहले ये बात होगी

ना मंगनी की बात होगी 

ना बारात की बात होगी

चाय कैसी बनाते हो पहले ये बात होगी 

#ShayariByArsalan








 मै तुम 

और खूबसूरत सी शाम 

एक चाय की प्याली 

और दो प्यार के जाम 

#ShayariByArsalan






 ए इश्क़ आ तुझे मै गले लगा लूं

 बाहों में भरकर कुल्हड़ वाली
          
       चाय बना लूं

@ShayariByArsalan







 वो चाय ही क्या ? 

जो कड़क ना हो 

वो दिल ही क्या ? 

जिसमे धड़क ना हो 

प्यार तो आपने भी किया होगा 

मगर सुनो 

वो इश्क़ ही क्या 

जिसमे तड़प ना हो 

ShayariByArsalan






 एक कप चाय...

दो हम....

तीसरी मोहब्बत की निशानी 

और क्या जिंदगानी....


@ShayariByArsalan








 Chai jesa ishq kiya hai tumse



Subah sham na mile to sardard rehta hai

#ShayariByArsalan








 इश्क़ छन रहा है कुल्हड़ में 

जिसे बसाना है बसा लो अपने सीने में !!


@ShayariByArsalan






 आखिर मोहब्बत है मेरी 

अकड़ तो होनी चाहिए 

लड़की हो या चाय 

कड़क तो होनी चाहिए 



@ShayariByArsalan









 सुनो दर्द ए मोहब्बत का 

इलाज लाया हूं 

एक कप चाय लाया हूं 

@ShayariByArsalan







 मै बात किसी की करता हूं 

तो बात तुम्हारी आती है 

प्रेम से घिरते बादल मै 

बरसात तुम्हारी आती है 

मेरे इश्क़ का आलम क्या 

पूछोगे तुम ?

मै चाय की चुस्की लेता हूं 

तो याद तुम्हारी आती है 


@ShayariByArsalan

Wednesday, April 15, 2020

शौक़ीन चाय के

हलके में मत लेना तुम 
सावले रंग को.

दूध से कहीं ज्यादा देखे है 
मैंने शौक़ीन चाय के.


 मिलो कभी चाय पर फिर क़िस्से बुनेंगे..
तुम ख़ामोशी से कहना हम चुपके से सुनेंगे.






एक तेरा ख़्याल ही तो है मेरे पास.
वरना कौन अकेले में बैठे कर चाय पीता है.



चाय, शायरी, और तुम्हारी यादे
भाते बहुत हो. दिल जलाते बहुत हो .



कुछ इस तरह से शक्कर को 
बचा लिया करो,

चाय जब पीओ हमें 
जहन में बैठा लिया करो.




आज फिर चाय की मेज़ पर 
एक हसरत बिछी रह गयी,

प्यालियों ने तो लब छू लिए 
केतली देखती रह गयी.






इश्क़ और सुबह की चाय 
दोनों एक समान होती हैं,

हर बार वही नयापन, 
हर बार वही ताज़गी





उफ्फ चाय की तरह 
चाहा है मैने तुझे 

और तुने बिस्कुट की तरह 
डुबो दिया अपनी यादो मे मुझे


मेरी चाय आज फिर से 
ज़्यादा मीठी हो गई.

कितनी बार कहा है कि बार बार 
तुम याद ना आया करो.






 आज लफ्जों को मैने शाम की 
चाय पे बुलाया है.

बन गयी बात तो 
ग़ज़ल भी हो सकती है.








 चाय के कप से उड़ते धुंए में 
मुझे तेरी शक़्ल नज़र आती है.
तेरे इन्ही ख़यालों में खोकर, 
मेरी चाय अक्सर ठंडी हो जाती है.







आपकी एक चाय, 
इस शाम पर उधार है

फ़ुर्सत मिले तो एक 
हल्की सी हँसी के साथ 
कभी पिला जाना







सुनो...
कभी आओ ना मेरे घर. चाय पर बैठ 
साथ बाते करेगे मेरी. कुछ तुम्हारी








ठान लिया था कि अब और नहीं पियेगें 
चाय उनके हाथ की..
पर उन्हें देखा और लब बग़ावत कर बैठे