हलके में मत लेना तुम
सावले रंग को.
दूध से कहीं ज्यादा देखे है
मैंने शौक़ीन चाय के.
मिलो कभी चाय पर फिर क़िस्से बुनेंगे..
तुम ख़ामोशी से कहना हम चुपके से सुनेंगे.
एक तेरा ख़्याल ही तो है मेरे पास.
वरना कौन अकेले में बैठे कर चाय पीता है.
चाय, शायरी, और तुम्हारी यादे
भाते बहुत हो. दिल जलाते बहुत हो .
कुछ इस तरह से शक्कर को
बचा लिया करो,
चाय जब पीओ हमें
जहन में बैठा लिया करो.
आज फिर चाय की मेज़ पर
एक हसरत बिछी रह गयी,
प्यालियों ने तो लब छू लिए
केतली देखती रह गयी.
इश्क़ और सुबह की चाय
दोनों एक समान होती हैं,
हर बार वही नयापन,
हर बार वही ताज़गी
उफ्फ चाय की तरह
चाहा है मैने तुझे
और तुने बिस्कुट की तरह
डुबो दिया अपनी यादो मे मुझे
मेरी चाय आज फिर से
ज़्यादा मीठी हो गई.
कितनी बार कहा है कि बार बार
तुम याद ना आया करो.
आज लफ्जों को मैने शाम की
चाय पे बुलाया है.
बन गयी बात तो
ग़ज़ल भी हो सकती है.
चाय के कप से उड़ते धुंए में
मुझे तेरी शक़्ल नज़र आती है.
तेरे इन्ही ख़यालों में खोकर,
मेरी चाय अक्सर ठंडी हो जाती है.
आपकी एक चाय,
इस शाम पर उधार है
फ़ुर्सत मिले तो एक
हल्की सी हँसी के साथ
कभी पिला जाना
सुनो...
कभी आओ ना मेरे घर. चाय पर बैठ
साथ बाते करेगे मेरी. कुछ तुम्हारी
ठान लिया था कि अब और नहीं पियेगें
चाय उनके हाथ की..
पर उन्हें देखा और लब बग़ावत कर बैठे