Sunday, April 12, 2020

हाथ मिलाने से भी महरूम रहे

आज तक बनते रहे हैं जो हमारे ज़ामिन
उन से हम हाथ मिलाने से भी महरूम रहे
– जगदीश प्रकाश




अजनबी रंग छलकता हो अगर आँखों से
उन से फिर हाथ मिलाने की ज़रूरत क्या है
– नदीम गुल्लानी




वक़्त के साथ ‘सदा’ बदले तअल्लुक़ कितने
तब गले मिलते थे अब हाथ मिलाया न गया
– सदा अम्बालवी




वो वक़्त का जहाज़ था करता लिहाज़ क्या
मैं दोस्तों से हाथ मिलाने में रह गया
– हफ़ीज़ मेरठी




वो कौन था जो हाथ मिला कर निकल गया
बरपा हिसार-ए-जिस्म में कोहराम क्यूँ हुआ
– हमदम कशमीरी





मेरी बर्बादी में था हाथ कोई पोशीदा
उस ने जब हाथ मिलाया तो मुझे याद आया
– हैरत फ़र्रुख़ाबादी




दुनिया तो हम से हाथ मिलाने को आई थी
हम ने ही एतिबार दोबारा नहीं किया
– अंबरीन हसीब अंबर

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