जरा सी कैद से घुटन तुम्हें होने लगी, तुम्हें तो पंक्षी की कैद सदा भली लगी..।’ ‘इक मुद्दत से आरजू थी फुरसत की....मिली तो इस शर्त पे कि किसी से ना मिलो।’ कल तक जो कहते थे मरने की फुर्सत नहीं,आज वो बैठकर सोचते हैं जिएं कैसे..।’ सारे मुल्कों को नाज था अपने-अपने...
जरा सी कैद से

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