Sunday, April 12, 2020

जरा सी कैद से


जरा सी कैद से घुटन तुम्हें होने लगी,  
तुम्हें तो पंक्षी की कैद सदा भली लगी..।’ 



‘इक मुद्दत से आरजू थी फुरसत की....
मिली तो इस शर्त पे कि किसी से ना मिलो।’ 



कल तक जो कहते थे मरने की फुर्सत नहीं,
आज वो बैठकर सोचते हैं जिएं कैसे..।’ 




सारे मुल्कों को नाज था अपने-अपने परमाणु पर
अब कायनात बेबस हो गई छोटे से कीटाणु पर।’




कुदरत का कहर भी जरूरी था साहब
हर कोई खुद को खुदा समझ रहा था।’



ना इलाज है ना दवाई है, 
ए इश्क तेरे टक्कर की बला आई है।