निकाल दिया उसने हमें अपनी जिंदगी से, भीगे कागज़ की तरह, न लिखने के काबिल छोड़ा न जलने के।
वजह तक पूछने का मौका ही ना मिला, बस लम्हे गुजरते गए और हम अजनबी होते गए।पलकों की हद तोड़ के, दामन पे आ गिरा, एक आसूं मेरे सब्र की, तोहीन कर गया।अब मोहब्बत नहीं रही इस जमाने...
निकाल दिया उसने हमें अपनी जिंदगी से
