निकाल दिया उसने हमें अपनी जिंदगी से, भीगे कागज़ की तरह, न लिखने के काबिल छोड़ा न जलने के।
वजह तक पूछने का मौका ही ना मिला, बस लम्हे गुजरते गए और हम अजनबी होते गए।
पलकों की हद तोड़ के, दामन पे आ गिरा, एक आसूं मेरे सब्र की, तोहीन कर गया।
अब मोहब्बत नहीं रही इस जमाने में, क्योंकि लोग अब मोहब्बत नहीं मज़ाक किया करते है।
छोड़ दिया हमने तेरे ख्यालों में जीना, अब हम लोगों से नहीं, लोग हमसे मोहब्बत करते है।
न ज़ख्म भरे, न शराब सहारा हुई, न वो वापस लोटी, न मोहब्बत दोबारा हुई..
मोहब्बत नही तो मुकदमा हि दायर कर दे जालिम, तारीख दर तारीख तेरा दीदार तो होगा।
मुस्कुराने की आदत भी कितनी महँगी पड़ी हमे, छोड़ गया वो ये सोच कर की हम जुदाई मे भी खुश हैं!!
शीशे में डूब कर, पीते रहे उस “जाम” को, कोशिशें तो बहुत की मगर, भुला ना पाए एक “नाम” को।
दुआ करना दम भी उसी तरह निकले, जिस तरह तेरे दिल से हम निकले।
तलब ऐसी कि अपनी सांसों में समा लू तुझे, किस्मत ऐसी कि देखने को भी मोहताज हूँ तुझे!!
बिखरती रही जिंदगी बूँद-दर-बूँद, मगर इश्क़ फिर भी प्यासा रहा।
अच्छा है आँसुओं का रंग नहीं होता, वरना सुबह के तकिये रात का हाल बयां कर देते।
टूटे हुए दिल भी धड़कते है उम्र भर, चाहे किसी की याद में या फिर किसी फ़रियाद में!!
सुना था मोहब्बत मिलती है, मोहब्बत के बदले, हमारी बारी आई तो, रिवाज ही बदल गया।
हर दर्द का इलाज़ मिलता था जिस बाज़ार में, मोहब्बत का नाम लिया तो दवाख़ाने बन्द हो गये!!