आज तक बनते रहे हैं जो हमारे ज़ामिनउन से हम हाथ मिलाने से भी महरूम रहे– जगदीश प्रकाश
अजनबी रंग छलकता हो अगर आँखों सेउन से फिर हाथ मिलाने की ज़रूरत क्या है– नदीम गुल्लानीवक़्त के साथ ‘सदा’ बदले तअल्लुक़ कितनेतब गले मिलते थे अब हाथ मिलाया न गया– सदा अम्बालवीवो वक़्त...
हाथ मिलाने से भी महरूम रहे
