Monday, April 27, 2020

हम तो नरम पत्तों की शाख़ हुआ करते थे

हम तो नरम पत्तों की शाख़ हुआ करते थे
हम तो नरम पत्तों की शाख़ हुआ करते थे, छीले इतने गए कि “खंज़र ” हो गए… खता उनकी भी नहीं है वो क्या करते, हजारों चाहने वाले थे किस-किस से वफ़ा करते।कत्ल हुआ हमारा इस तरह किस्तों में, कभी खंजर बदल गए, कभी कातिल बदल गए।रहता तो नशा तेरी यादों का ही है, कोई पूछे तो...