Monday, April 27, 2020

अभी एक टूटा तारा देखा

अभी एक टूटा तारा देखा, बिलकुल मेरे जैसा था, चाँद को कोई फर्क न पड़ा, बिलकुल तेरे जैसा था।




लगा कर आग सीने में, चले हो तुम कहाँ, अभी तो राख उड़ने दो, तमाशा और भी होगा।






सजा ये है की बंजर जमीन हूँ मैं, और जुल्म ये है की बारिशों से इश्क़ हो गया।




तरस आता है मुझे अपनी, मासूम सी पलकों पर, जब भीग कर कहती हैं कि अब, रोया नहीं जाता।






इन्हीं रास्तों ने जिन पर मेरे साथ, तुम चले थे… मुझे रोक के पूछा की तेरा, हमसफ़र कहाँ है…








फ़रियाद कर रही है तरसी हुई निगाहें, किसी को देखे एक अरसा हो गया।





हमें देख कर जब उसने मुँह मोड़ लिया, एक तसल्ली हो गयी चलो पहचानते तो हैं।





मैंने दरवाज़े पे ताला भी लगा कर देखा लिया, पर ग़म फिर भी समझ जाते है की मैं घर में हूँ!!






रहेगा किस्मत से यही गिला ज़िंदगी भर, जिसको पल-पल चाहा उसी को पल-पल तरसे!!







अपना बनाकर फिर कुछ दिनों में बेगाना बना दिया, भर गया दिल हमसे और मजबूरी का बहाना बना दिया।







माना मौसम भी बदलते है मगर धीरे-धीरे, तेरे बदलने की रफ़्तार से तो हवाएं भी हैरान है।






आदत बदल सी गई है वक्त काटने की, हिम्मत ही नहीं होती अपना दर्द बांटने की।






ज़िन्दगी की हर शाम, हसीन हो जाए… अगर मेरी मोहब्बत मुझे, नसीब हो जाये…






मैं अक्सर रात में यूं ही सड़क पर निकल आता हूँ, यह सोचकर की कहीं ,चाँद को तन्हाई का अहसास न हो।






लम्हा दर लम्हा साथ उम्र बीत ज़ाने तक, मोहब्बत वहीं हैं ज़ो चले, मौत आने तक…







भीगी नहीं थी मेरी आँखें कभी, वक़्त की मार से… देख तेरी थोड़ी सी बेरुखी ने इन्हें, जी भर के रुला दिया…









हमने उतार दिए सारे कर्ज तेरी मुहब्बत के, अब हिसाब होगा तो सिर्फ तेरे दिए हुए जख्मों का।






मेरी आँखो का हर आँसू, तेरे प्यार की निशानी है, जो तू समझे तो मोती है, ना समझे तो पानी है…








जागना कबूल हैं तेरी यादों में रात भर, तेरे एहसासों में जो सुकून है वो नींद में अब कहाँ!!






आखिर क्यों बस जाते हैं दिल में बिना इजाज़त लिए वो लोग, जिन्हे हम ज़िन्दगी में कभी पा नहीं सकते।







मुस्कुराने की अब वजह याद नहीं रहती, पाला है बड़े नाज़ से… मेरे गमों ने मुझे!







खुदखुशी करने से मुझे कोई परहेज नही है, बस शर्त इतनी है कि फंदा तेरी जुल्फों का हो!!






मुझे नींद की इजाज़त भी उनकी यादों से लेनी पड़ती है, जो खुद आराम से सोये हैं, मुझे करवटों में छोड़ कर।








भला कौन इस दिल की इतनी, देख-भाल करे… रोज़-रोज़ तो इसकी किस्मत में, टूटना ही लिखा है…







उदास कर देती है हर रोज ये बात मुझे, ऐसा लगता है भूल रहा है कोई मुझे धीरे-धीरे…





समझदार ही करते है अक्सर गलतिया, कभी देखा है, किसी पागल को मोहब्बत करते।








याद में नशा करता हूँ… और नशे में याद करता हूँ…