Sunday, April 12, 2020

बेवजह घर से निकलने की ज़रूरत क्या है

एक ठोकर की बड़ी ज़रूरत थी,,
अपनी हद्द से आगे निकल गयी थी दुनिया



जो भी ये सुनता है हैरान हुआ जाता है,
अब कोरोना भी मुसलमान हुआ जाता है।



पहली बार ऐसा हो रहा है की
लोग पैसा कमाना छोड़कर घर में कैद होकर बैठे है।



LockDown के चक्कर में इतना भी सामान मत खरीद लेना
की बाद में ठेला लेके बेचने निकलना पड़े।



एक ठोकर की बड़ी ज़रूरत थी,,
अपनी हद्द से आगे निकल गयी थी दुनिया




जो भी ये सुनता है हैरान हुआ जाता है,
अब कोरोना भी मुसलमान हुआ जाता है।


इंसानों की बस्ती का यही तो बस एक रोना है
अपनी हो तो खांसी, दूसरों को हो तो कोरोना है।



सुकून की उड़ान आज परिंदों के परों में हैं
क्योंकि शिकारी सारे बंद अपने अपने घरों में हैं।


घर गुलज़ार, सूने शहर,
बस्ती बस्ती में कैद हर हस्ती हो गयी
आज फिर ज़िंदगी महंगी
और दौलत सस्ती हो गयी।



खुदा की कुदरत का एक मंजर निराला देखा
आज पंछी खुले आसमान में उड़े और घर में कैद ज़माना देखा।



मेरे हालात का कोई किसी से ज़िक्र न करे
मैं ज़िंदा हूँ कोई शख्स मेरी फ़िक्र न करे।



कुदरत का कहर भी ज़रूरी है साहब
यहाँ हर कोई खुद को खुदा समझने लगा था।



जरा सी क़ैद में घुटन होने लगी।
तुम तो पंछी पालने के बहुत शौकीन थे।



मौत का मौसम है, नई वबा आईं है
सांस लेने पर भी, इक सज़ा आईं है।



जान नहीं छोड़ती, जान जाने तक
अये इश्क़ तेरे टक्कर की, एक बला आई है।



बेवजह घर से निकलने की ज़रूरत क्या है
मौत से आंख मिलाने की ज़रूरत क्या है।

सबको मालूम है बाहर की हवा है क़ातिल
यूँ ही क़ातिल से उलझने की ज़रूरत क्या है।

ज़िन्दगी एक नैमत है इसे सम्भाल के रख
क़ब्रगाहों को सजाने की ज़रूरत क्या है।

दिल बहलने के लिए घर मे वजह हैं काफ़ी
यूँ ही गलियों मे भटकने की ज़रूरत क्या है।