हम तो नरम पत्तों की शाख़ हुआ करते थे, छीले इतने गए कि “खंज़र ” हो गए…
खता उनकी भी नहीं है वो क्या करते, हजारों चाहने वाले थे किस-किस से वफ़ा करते।कत्ल हुआ हमारा इस तरह किस्तों में, कभी खंजर बदल गए, कभी कातिल बदल गए।रहता तो नशा तेरी यादों का ही है, कोई पूछे तो...
हम तो नरम पत्तों की शाख़ हुआ करते थे
